Loading...

हाना एक शिक्षिका बन गई थी, क्योंकि उसके कारण – उसके सूटकेस और उसकी कहानी के कारण हजारों जापानी बच्चे उन मूल्यों को सीख रहे थे…. सहनशीलता सम्मान और सहानुभूति।  (पुस्‍तक का एक अंश) 

केरन लेवाइन द्वारा रचित “हाना का सूटकेस’एक अद्भुत रचना है। यह हमारे समय की क्रूरता को बहुत संवेदनशील और रचनात्मक तरीके से प्रस्तुत करती है। कथा का मूल केन्‍द्र जापान का चिल्‍ड्रन हालेाकॉस्‍ट सेंटर है और कथा की सूत्रधार सेंटर की निेदेशक फूमिको इशिओका। उनकी सामने चुनौती है कि बच्‍चों को हॉलोकास्‍ट यानी नरसंहार के बारे में कैसे परिचित कराया जाय ।कहानी रोचक शैली में कही गयी है।

इस कथा की नायिका है चेकोस्‍लोवाकिया के नेवो मेश्‍तो की हाना ब्रेडी। पूरी कथा हाना ब्रेडी के बारे में जानने के रोमांच में आगे बढ़ती है । यह सर्वविदित है कि द्व‍ितीय विश्‍वयुद्ध के दौरान जर्मनी में नाजी सरकार थी। जिसका मुखिया एडॉल्‍फ हिटलर था। इस दौरान यहूदियों का बड़े पैमाने पर नरसंहार किया गया। आंकड़ों पर गौर करें तो लगभग साठ लाख यहूदियों को जान से मार दिया गया। इनमें 15 लाख बच्‍चे थे । जिन्हें खेलना था, बड़ा होना था, जिनके सपने थे। लेकिन सब दफन हो गये। हाना उसी में से एक बच्‍ची थी जो शिक्षक बनना चाहती थी। नवें साल से उसने इस मानवजनित त्रासदी को महसूस करना शुरू किया और 13 वर्ष की आयु में उसे मार डाला गया। 

इन चार सालों में कैसे चहकती खिलखिलाती हाना की दुनिया खामोशी और उदासी में सिमटती गयी, यह एक दर्दनाक यात्रा है जो हमारी संवेदना को झकझोरती है । पहले उन्‍हें गामीण समाज में अलग-थलग किया गया क्‍योंकि वे यहूदी थे । उनके आने-जाने की जगहें सीमित हुईं । फिर घर से निकलने के घंटे निश्चित हुए । खेल के मैदान बंद, स्‍कूल में जाना बंद। सिनेमा घरों में जाना बंद। दोस्‍तों से मिलना बंद। अंत में घर शेष बचा । वहां से पहले मां का छीना जाना। फिर पिता का और अंतत: अंतिम आसरा रिश्‍तेदारों और गांव से जुदा होकर एक यातना शिविर में पहुंचा दिया जाना। एक खुली खिली दुनिया का एक कमरे कें अंधेरे में साझे बिस्‍तर तक सीमित हो जाना। यह सबकुछ हाना के जीवन में होता हुआ दिखता है और हमें महसूस होता है तिल तिल कर मरना। इसको हम यहां एक किरदार के जरिए साठ लाख लोगों के बारे में महसूस कर सकते हैं। एक-एक व्‍यक्‍ति को किस तरह के घृणा, अपमान, भय और दहशत से गुजरता पड़ा होगा इसकी कल्‍पना मात्र से सिहरन होती है । 

यह किताब एक समुदाय विशेष्‍i के सफाये में किन प्रक्रियाओं को अपनाया गया उससे भी हमारा परिचय कराती है – पहले जीवंत समाज से बाहर कर घेट्टो बनाना, एक ही परिवार को थेरिशिएनस्‍टाट जैसे अलग-अलग यातना शिविरों में बिखरा देना, अदल- बदल करते रहना और अंतत: आउश्वित्‍ज और पूर्व के अन्‍य नरसंहार शिविरों में भेजकर मार डालना। यह पूरी प्रक्रिया इतनी त्रासद और पीड़ा देनेवाली थी कि कई लोग तो बीच की यात्राओं में ही दम तोड़ देते थे । 

इस सबसे गुजरते हुए लोगों में बेचैनी है, गुस्‍सा है लेकिन उससे निकलने का कोई रास्‍ता नहीं है । हालांकि इस कथा में मनुष्‍य की जीवंतता  की झलक भी मिलती है। वह कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी रचनात्‍मक हो सकता है । हाना और उसके भाई चार्ल्‍स में वह बात दिखाई देती है । उस कैद में भी हाना चित्र बनाती है । बच्‍चे अपनी कहानियां लिखते हैं। अपने सपने अभिव्‍यक करते हैं। 

मूल रूप में अंग्रेजी में प्रकाशित इस पुस्‍तक का हिन्‍दी में प्रकाशन एकलव्‍य ने पराग के सहयोग से किया है । पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा का अनुवाद है सधा हुआ और प्रवाहमय है जिसमें अनुवादपन नहीं झलकता। हिन्‍दी में आने से पूर्व ही इस रचना को कई पुरस्‍कार भी मिल चुके हैं। कहा जा सकता है यह एक महत्‍वपूर्ण किताब है जो बच्चों के लिए आवश्‍यक तो है ही बड़ों के लिए भी उपयोगी है । उम्‍मीद है कि हम पूर्व की क्रूरताओं से सबक लें और एक परस्‍पर सहयोगी और सम्‍मान जनक समाज बना सकें, जिसमें बच्चों के लिए खूब सारी जगह हो ।

The Sad Little Fact

What We Can Unfold with The Sad Little Fact

‘It was sad. It was little. It was a fact. Nobody believed it. People accused it of being fake. They tried to bury it. They tried to destroy its spirit…

Proma Basu Roy Parag Reads 07 August 2020

The Mystery of the Missing Soap

I wonder what Charles Dickens was thinking when he wrote, “It was the best of times, it was the worst of times…

Proma Basu Roy Parag Reads 24 April 2020